
कोरबा – अवैध अतिक्रमण और नियम के विपरीत कार्य को लेकर वेदांता ग्रुप हमेशा विवादों में रहता है सरकारी जमीन पर अतिक्रमण और नियम के विपरीत कार्य करना इनके लिए कोई नई बात नही है। बालको प्लांट में 51% का शेयर वेदांता ग्रुप के पास है और 49 % सरकार का है सरकार का शेयर है इसी का नायजाज फायदा वेदांता ग्रुप के द्वारा उठाने का आरोप लगता ही रहता है।वेदांता ग्रुप के द्वारा इसी तरह की मनमानी का उदाहरण सामने आया है इनके द्वारा सरकार के द्वारा संरक्षित वनभूमि में लगे हजारों पेड़ों को अपने निजी स्वार्थ के लिए काट कर फेंक दिया गया और सबूत मिटाने के लिए उसके अवशेष तक को या यू कहे जड़ों तक को उखाड़ कर फेंक दिया गया। वेदांता ग्रुप कि यह मनमानी मानो प्रशासन के नाक के नीचे चलती रही लेकिन किसी जिम्मेदार अधिकारियों ने इस पर संज्ञान नहीं लिया और वन भूमि पर लगे पेड़ो के कठिन के साथ-साथ अतिक्रमण होता रहा।वेदांता ग्रुप के इस मनमानी को लेकर एक पत्रकार ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हुए जनहित याचिका दायर कर दिया जनहित याचिका में उल्लेखित विषयों को गंभीरता से लेते हुए हाईकोर्ट ने मामले पर संज्ञान ले लिया है और नोटिस जारी करते हुए 21 दिनों के भीतर जवाब मांगा है । इसके साथ ही नगर पालिका निगम के कमिश्नर सहित कई जिम्मेदार अधिकारियों को भी नोटिस जारी किया गया है ।शिकायतकर्ता ने हाई कोर्ट में वेदांता की मनमानी का उल्लेख करते हुए बताया कि उनके द्वारा हजारों पेड़ों को नष्ट कर दिया गया सभी पेड़ शासकीय वन भूमि पर थे। उनके इस मनमानी से स्थानीय लोगों को भारी परेशानी हो रही है। आपको बता दे शासकीय वन भूमि पर किसी भी पेड़ को काटने के लिए राज्य एवं केंद्र स्तर से अनुमति आवश्यक होती है लेकिन प्रबंधन के द्वारा अनुमति नहीं किया गया शासकीय भूमि को अपनी निजी संपत्ति मानते हुए हजारों पेड़ों को नष्ट किया गया और उस पर अतिक्रमण करते हुए पक्का निर्माण कराया जा रहा है।हैरानी की बात यह है कि वेदांता ग्रुप के इस मनमानी को लेकर जिला प्रशासन के जिम्मेदार अधिकारी और कर्मचारी भी अपने कर्तव्यों का निर्वहन नहीं किए या यूं कहें उनके इस मनमानी पर मुख दर्शक बनकर उनके इस अवैध कार्य में एक तरह से मदद करते रहे।शासकीय भूमि के अतिक्रमण पर त्वरित संज्ञान लेने वाले प्रशासन की जिम्मेदार अधिकारी संयंत्र की मनमानी पर आखिर चुप्पी क्यों साधे हुए है यह भी एक बड़ा सवाल है।वेदांता ग्रुप के द्वारा 3 सप्ताह के समय अंतराल में दस्तावेजी जवाब प्रस्तुत नही करने की स्थिति में माननीय उच्च न्यायालय के द्वारा स्थगन सहित जनहित में महत्वपूर्ण आदेश पारित होने के कयास लगाए जा रहे है।माननीय उच्च न्यायालय के द्वारा दिए गए नोटिस के संबंध में बालकों के जनसंपर्क अधिकारी प्रखर सिंह से जानकारी चाहने पर उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया।