Friday, October 24, 2025
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ऑल इंडिया इंश्योरेंस एम्पलाईज एसोसियेशन का 12वां वार्षिक अधिवेशन, LIC और PSGI कंपनियों के शीर्ष पदों में निजी क्षेत्र के उम्मीदवारों की नियुक्ति अनुचित

समग्र बीमा संशोधन विधेयक 2025 राष्ट्रीयकरण विरोधी कदम

बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में वृद्धि आत्मघाती

ऑल इंडिया इंश्योरेंस एम्पलाईज एसोसियेशन भारतीय जीवन बीमा में कार्यरत् 85 प्रतिशत से अधिक कर्मचारियों का नेतृत्व करता है तथा यह संगठन भारतीय जीवन बीमा निगम के जन्म 1956 के पहले से ही वर्ष 1951 से अस्तित्व में आ गया था। विश्व में संभवतः यही एकमात्र अजूबा संगठन है जो संस्था के जन्म के पूर्व अस्तित्व में आया। राष्ट्रीयकरण के पूर्व देश में 245 से अधिक बीमा कंपनियां काम कर रही थी, जो पॉलिसीधारकों के हितों का संरक्षण के स्थान पर बीमा में कमाये गये मुनाफे को अपनी घाटे में चलने वाले व्यवसाय का संरक्षण कर पालिसीधारकों के धन को हड़पने के खेल में लगी थी और यही कारण था कि पॉलिसीधारकों के हित में बीमा व्यवसाय का राष्ट्रीयकरण किया गया।राष्ट्रीयकरण के उद्देश्य भी तय किये गये थे, जिसमें जनता की बचत को राष्ट्र कल्याण में लगाना, उन्हे बीमा सुरक्षा प्रदान करना तथा सामाजिक कल्याण के कार्यक्रमों को संचालित कर रोजगारों के सृजन का भी कार्य शामिल था।लेकिन 1991 से देश में आई नवउदारीकरण की व्यवस्था के साथ बीमा क्षेत्र को निजी बीमा कंपनियों के लिये खोलने के प्रयासों के चलते वर्ष 1999 मे IRDA कानून बनाया गया तथा देश में निजी बीमा कंपनियों के लिए मार्ग प्रशस्त किया गया, पहले 26 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, फिर वर्ष 2015 में बढ़ाकर 49 प्रतिशत और फिर पुनः बढ़ाकर वर्ष 2021 में 74 प्रतिशत वृद्धि कर दी गई। वास्तविक तथ्य यह है, कि देश में अब तक संसद में वित्त राज्यमंत्री द्वारा प्रस्तुत आंकड़े के अनुसार मात्र 32.67 प्रतिशत FDI ही आया है। सरकार विदेशी पूंजी के दबाव में इसे 100 प्रतिशत करने संसद में बजट सत्र में बीमा कानून संशोधन विधेयक के जरिये बढ़ाने जा रही है। जब 74 प्रतिशत सीमा बढ़ने के बाद भी 32.67 प्रतिशत विदेशी निवेश आया है, तो इसमें वृद्धि का सीधा अर्थ है, सरकार तथ्यों पर नहीं बल्कि विदेशी कंपनियों के फायदों को साध रही है।यह सरकार एक तरफ स्वदेशी का नारा दे कर स्वदेशी अपनाने की बात कर रही है, तो दूसरी ओर उसके ठीक विपरीत काम करते हुये उन्हे आमंत्रित कर रही है, यह दोहरा चरित्र अनुचित है।सरकार समग्र बीमा संशोधन विधेयक 2025 के जरिये बीमा कानून 1938 (बीमा अधिनियम), LIC अधिनियम 1956 और आईआरडीए अधिनियम 1999 में प्रतिगामी संशोधन के जरिये इन कानूनों को समाप्त कर कार्पोरेट एवं विदेशी कंपनियों का ही हित साधने का कार्य कर रही है। सरकार इन कानूनों को लागू कर संसद के अधिनियमों की प्रक्रिया तथा जवाबदेही से बचने का रास्ता तलाश रही है, ताकि संसद में इसके खिलाफ चर्चा या मतविभाजन या अन्य संसदीय प्रक्रिया को खत्म कर सके। हमारा स्पष्ट मत है कि लोकतंत्र में सरकार किसी भी दल का हो वह जनता द्वारा चुनी गई सरकार सरकारी क्षेत्रों का प्रबंधक मात्र है उसका स्वामी नहीं और इसलिये उक्त संशोधनों के प्रस्तावों को रद्द किया जाना चाहिये।मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति (ACC) द्वारा जारी कार्यकारी आदेश के अनुसार जीवन बीमा निगम (LIC), सार्वजनिक क्षेत्र की सामान्य बीमा कंपनियों (PSGI) और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंको जिसमें स्टेट बैंक भी शामिल है, में पूर्णकालिक निदेशक, प्रबंध निदेशक, कार्यकारी निदेशक और अध्यक्ष की नियुक्ति के लिये संशोधित समेकित दिशा-निर्देश स्वीकृत किये है। जो कि, LIC अधिनियम 1956, GIBNA अधिनियम 1972 और भारतीय स्टेट बैंक अधिनियम 1955. के तहत् नियुक्ति की प्रक्रियाओं को बिना संशोधित किये जारी करना कार्यपालिका की अतिक्रमणात्मक कार्यवाही है और यह संसद की अधिकारिता को कमजोर करता है।यह कदम राष्ट्रीयकरण की मूल भावना पर प्रहार है, जिसके तहत् बैंकिंग और बीमा क्षेत्र निजी मुनाफे के बजाय जनहित की सेवा करें। इस कदम से निजीकरण का रास्ता प्रशस्त होगा, अपितु देश की आर्थिक संप्रभुता को भी खतरा और जनता की बचत की सुरक्षा को भी जोखिम में डालेगा। इन संस्थानों में शीर्ष पदों को निजी कार्पोरेट क्षेत्र के लिए खोलना पहले से ही सर्वश्रेष्ठ योगदान दे रहे अधिकारियों के मनोबल को गिरायेगा और आंतरिक पदोन्नति को भी बाधित करेगा।भारतीय जीवन बीमा निगम जो कि मात्र 5 करोड़ से अपनी यात्रा आरंभ की थी व आज देश के पॉलिसी धारकों के विश्वास का पर्याय बन गया है और 1956 में अपनी स्थापना के बाद लगातार अनोखे कीर्तिमानों, प्रमुख कार्पोरेट जगत के सभी तरह के पुरस्कारों के साथ आज 55 लाख करोड़ रू. की परिसंपत्तियों को प्रबंधित कर रही है। लगातार विकास यात्रा के बावजूद 40 करोड़ बीमा धारकों के विशाल हिस्से को शानदार सेवा प्रदान कर रहा है। बावजूद इसके, लंबे समय से नई भर्ती नहीं होना सरकार के रोजगार के सवाल पर कथनी-करनी को स्पष्ट करता है। इतनी विशाल संख्या को सेवा देना जो कि कुछ देशों को छोड़कर अधिकांश देशों की जनसंख्या से अधिक है, नई भर्ती की मांग करता है।

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