
करतला ब्लॉक के ग्राम पंचायत डोंगाआमा में संचालित आंगनबाड़ी केंद्र पर गंभीर लापरवाही का मामला सामने आया है। तय समय पर जब केंद्र की गतिविधियाँ शुरू होनी चाहिए थीं, उस समय केंद्र का दरवाजा बंद मिला। यह स्थिति सीधे तौर पर आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका दोनों की गैरजिम्मेदारी को उजागर करती है।
आंगनबाड़ी कार्यकर्ता से फोन पर बातचीत करने पर उन्होंने बताया कि उनका बच्चा बीमार है और इलाज के लिए वे अस्पताल गई हैं। वहीं केंद्र की सहायिका ने भी यही तर्क दिया कि उनके बच्चे की तबीयत खराब है, जिसके कारण वे उपस्थित नहीं हो पाईं। इस प्रकार, दोनों के एक साथ अनुपस्थित रहने से आंगनबाड़ी केंद्र का संचालन पूरी तरह बाधित रहा।
आंगनबाड़ी का उद्देश्य
आंगनबाड़ी केंद्र केवल भवन या संस्था नहीं है, बल्कि यह ग्रामीण और शहरी इलाकों के बच्चों तथा महिलाओं के लिए जीवनरेखा की तरह है। यहाँ 0 से 6 वर्ष तक के बच्चों को पोषण आहार, गरम भोजन और प्रारंभिक शिक्षा दी जाती है। इसके साथ ही गर्भवती महिलाओं और धात्री माताओं को भी पोषण संबंधी सहायता और जानकारी दी जाती है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य बच्चों में कुपोषण को रोकना, स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच आसान बनाना और प्रारंभिक शिक्षा की नींव मजबूत करना है।
लेकिन जब केंद्र ही बंद रहता है तो इन सभी उद्देश्यों का धराशायी होना तय है। बच्चे न तो पोषण आहार प्राप्त कर पाते हैं और न ही प्रारंभिक शिक्षा। महिलाओं को मिलने वाली पोषण संबंधी सेवाएँ भी ठप हो जाती हैं।
जिम्मेदारी से भागना
डोंगाआमा आंगनबाड़ी केंद्र का बंद रहना केवल एक सामान्य घटना नहीं है। यह उस गैरजिम्मेदारी का प्रमाण है जिसमें कार्यकर्ता और सहायिका अपनी ड्यूटी को व्यक्तिगत कारणों के आगे रख देते हैं। आंगनबाड़ी जैसी संवेदनशील योजना में व्यक्तिगत व्यस्तता को प्राथमिकता देकर जिम्मेदारी से भागना सीधा बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है।
कार्यकर्ताओं का यह तर्क कि उनके बच्चे बीमार हैं, यह मानवीय रूप से उचित लग सकता है, लेकिन यह सवाल उठना भी स्वाभाविक है कि क्या सरकारी सेवा और योजनाएँ इस तरह व्यक्तिगत कारणों पर ठप की जा सकती हैं? यदि दोनों जिम्मेदार पदाधिकारी एक साथ अनुपस्थित रहते हैं तो वैकल्पिक व्यवस्था क्यों नहीं की जाती?
असर बच्चों पर
केंद्र बंद रहने का सबसे बड़ा नुकसान छोटे बच्चों को उठाना पड़ता है। उन्हें गरम भोजन नहीं मिल पाता, पोषण आहार बाधित होता है और प्रारंभिक शिक्षा पर असर पड़ता है। आंगनबाड़ी से जुड़ी योजनाओं का मूल उद्देश्य ही बच्चों को कुपोषण से बचाना और उन्हें शिक्षा से जोड़ना है। लेकिन यदि केंद्र समय पर न खुले तो बच्चों की दिनचर्या प्रभावित होती है और योजनाओं का लाभ अधूरा रह जाता है।
इसके अलावा, गर्भवती महिलाओं और माताओं को भी स्वास्थ्य व पोषण संबंधी सहायता से वंचित होना पड़ता है। इससे योजनाओं का उद्देश्य केवल फाइलों और रिकॉर्ड तक सीमित रह जाता है।
कार्यवाही की आवश्यकता
यह साफ तौर पर दिख रहा है कि कार्यकर्ता और सहायिका अपनी जिम्मेदारियों के प्रति गंभीर नहीं हैं। जिस पद पर वे नियुक्त हैं, वहाँ से अनुपस्थित रहना सीधे तौर पर कर्तव्यहीनता है। यह स्थिति केवल लापरवाही नहीं बल्कि कर्तव्य उल्लंघन की श्रेणी में आती है।
ऐसे मामलों में यह आवश्यक हो जाता है कि संबंधित कार्यकर्ता और सहायिका पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए। यदि उन पर सख्ती नहीं दिखाई गई तो भविष्य में और भी केंद्र इसी तरह प्रभावित होंगे। बच्चों और महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करने के लिए यह कदम जरूरी है।
लगातार बढ़ रही ढिलाई
यह घटना इस बात का संकेत है कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं में अनुशासन की कमी बढ़ती जा रही है। कभी कोई बहाना, तो कभी व्यक्तिगत कारण — ऐसे तर्क देकर जिम्मेदारी से बचना अब आम हो चुका है। योजनाओं के संचालन में इस तरह की ढिलाई का असर सीधा बच्चों के स्वास्थ्य और शिक्षा पर पड़ता है।
यदि ऐसी घटनाएँ बार-बार सामने आती रहीं तो आंगनबाड़ी योजना का महत्व केवल नाम मात्र रह जाएगा। वास्तविकता में बच्चों और महिलाओं को कोई लाभ नहीं मिल पाएगा।
निष्कर्ष
डोंगाआमा आंगनबाड़ी केंद्र का बंद रहना केवल एक छोटी सी घटना नहीं है। यह उस बड़ी समस्या की तस्वीर है जहाँ कार्यकर्ता और सहायिका अपनी ड्यूटी को गंभीरता से नहीं लेते। बच्चों का भविष्य और महिलाओं का स्वास्थ्य, दोनों इस तरह की लापरवाही से प्रभावित हो रहे हैं।
इस स्थिति में साफ तौर पर यह कहना गलत नहीं होगा कि कार्यकर्ताओं की मनमानी और गैरजिम्मेदारी के कारण आंगनबाड़ी जैसी संवेदनशील योजना कमजोर हो रही है। इसलिए इस मामले को केवल साधारण घटना मानकर नजरअंदाज करना सही नहीं होगा। जिम्मेदार कार्यकर्ताओं पर कार्रवाई कर अनुशासन कायम करना ही इसका समाधान है।