
भिलाई बाजार – संतान की सुख-समृद्धि व दीर्घायु होने की मनोकामना के लिये हलषष्ठी (खमरछठ) का पर्व गांव, शहर के सभी महिलाओं द्वारा सामूहिक रुप से पूजा-अर्चना कर मनाया गया। भिलाई बाजार में पंडित अभय मिश्रा ने विधान से पूजा अर्चना कराए, वहीं पंडित अभय मिश्रा ने खमरछठ पूजा के बारे में बताये कि पुत्र के दीर्घायु होने की कामना को लेकर माताओं द्वारा मनाया जाने वाला छत्तीसगढ़ का पावन पर्व खमरछठ व्रत भादो माह की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है, यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई श्री बलराम जी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है, जिसको अन्य राज्यों में विभिन्न नामों से जाना जाता है। कहा जाता है कि इसी दिन शेषनाग के अवतार श्री बलरामजी का जन्म हुआ था। बलरामजी का मुख्य शस्त्र हल और मूसल है इसलिये उन्हें हलधर भी कहा जाता है एवं उन्हीं के नाम पर इस पावन पर्व का नाम हलषष्ठी पड़ा है। इस दिन महिलायें संतान के बेहतर स्वास्थ्य, दीर्घायु और उनकी सम्पन्नता की कामना हेतु व्रत पूरे विधि विधान से करती हैं। इस दिन महिलायें महुवा के दातुन का दातून उपयोग करती हैं खरमर छठ के दिन व्रती महिलायें ऐसे जगहों पर पैर नही रखती जहाँ फसल पैदा होनी हो। इस दिन व्रती महिलायें हल से जोती हुई किसी भी चीज का सेवन नहीं करती हैं। आज के दिन भैंस का दूध व दधी ही उपयोग करते हैं, बिना हल चले धरती का अन्न व छः प्रकार की भाजी का विशेष महत्व है। महिलाओं द्वारा निर्जला व्रत रहकर मिट्टी से निर्मित भगवान शंकर पार्वती, गणेश, कार्तिकेय, नंदी बांटी भौरा एवं शगरी बनाकर पूजा-अर्चना करते हैं, पूजन पश्चात भुने हुए महुए का प्रसाद का बांटी जाती है और महिलाओं द्वारा प्रसाद के रुप में पसहर चांवल , भैंस का दूध, दही, घी . मुनगे की भाजी सहित छः प्रकार की भाजी का सेवन करते हैं , महिलायें अपनी संतान की दीर्घायु के लिये पुत्र के बायें कंधे एवं पुत्री के दायें कंधे में छह-छह बार नये कपड़े के कतरन को शगरी में डुबाकर छूही से निशान लगाती हैं जिससे उनकी संतान को भगवान का आर्शीवाद प्राप्त।